राजनाथ सिंह

नई दिल्ली
यूक्रेन-रूस संघर्ष में ड्रोन एक नए सैन्य हथियार के रूप में उभरे हैं। सैनिकों और उपकरणों की अधिकांश हानि पारंपरिक तोपखाने या बख्तरबंद वाहनों के कारण नहीं, बल्कि ड्रोन के कारण हुई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को यह बात कही। वह वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेस स्टॉफ कॉलेज (डीएसएससी) में भारत और मित्र देशों के सशस्त्र बल अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। राजनाथ सिंह ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य उभरती हुई तकनीकें प्रतिरोध और युद्ध में क्रांति ला रही हैं। युद्ध के मैदानों में तकनीकी नवाचार की शक्ति विस्मयकारी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए स्वदेशी रक्षा इकोसिस्टम का निर्माण एक रणनीतिक आवश्यकता है। इसी तरह ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ में अंतरिक्ष क्षमताएं सैन्य इंटेलिजेंस को नए स्तर पर ले जा रही हैं। यह निरंतर निगरानी, स्थिति निर्धारण, लक्ष्य निर्धारण और संचार को बदल रही हैं, इस प्रकार युद्ध को एक नए उच्च स्तर पर ले जा रही हैं।

रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि दुनिया ग्रे जोन और हाइब्रिड युद्ध के युग में है। जहां साइबर हमले, दुष्प्रचार अभियान और आर्थिक युद्ध ऐसे साधन बन गए हैं, जिनसे एक भी गोली चलाए बिना राजनीतिक-सैन्य लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी सीमाओं पर लगातार खतरों का सामना करना पड़ रहा है। पड़ोसी देशों से उत्पन्न छद्म युद्ध और आतंकवाद की चुनौती से ये और भी जटिल हो गए हैं।

राजनाथ सिंह ने प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के अलावा पश्चिम एशिया में संघर्ष और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनावों के समग्र सुरक्षा परिदृश्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी बात की। उन्होंने भविष्य के युद्धों के लिए सक्षम और प्रासंगिक बने रहने के लिए सशस्त्र बलों के परिवर्तन को सख्ती से आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि 2047 तक विकसित भारत का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृष्टिकोण दो आधारभूत स्तंभों – सुरक्षित भारत और सशक्त भारत पर मजबूती से टिका हुआ है। रक्षा मंत्री ने आत्मनिर्भरता के माध्यम से सशस्त्र बलों के विकास और आधुनिकीकरण पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, “चल रहे संघर्षों के सबक हमें सिखाते हैं कि एक सुदृढ़, स्वदेशी और भविष्य के लिए तैयार रक्षा प्रौद्योगिकी और विनिर्माण इकोसिस्टम का निर्माण एक विकल्प नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता है। कम लागत वाले उच्च तकनीक समाधान विकसित करने और सशस्त्र बलों की युद्ध क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। हमारी सेनाओं को न केवल तकनीकी परिवर्तनों के साथ समन्वय रखना चाहिए, बल्कि इसका नेतृत्व भी करना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “देशों और लोगों के बीच बढ़ती संपर्कता और निर्भरता का अर्थ है कि चुनौतियों का सामना व्यक्तिगत रूप से करने की तुलना में एक साथ मिलकर करना बेहतर है। पारस्परिक हित और तालमेल हमें उप-क्षेत्रीय, क्षेत्रीय और यहां तक कि वैश्विक स्तर पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेंगे।”

देश विदेश के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से राजनाथ सिंह ने कहा, “युद्ध सेनानियों और राष्ट्रीय सुरक्षा के रक्षकों के रूप में, आपको पर्यावरण और इसके प्रभावों के बारे में जागरूक रहने की आवश्यकता है। आपको भविष्य के लीडर्स होने के लिए आवश्यक क्षमता और कौशल हासिल करना चाहिए। आपको प्रमुख गुणों के रूप में अनुकूलनशीलता और दक्षता को अपनाना चाहिए। कल के युद्ध के मैदान में ऐसे लीडर्स की आवश्यकता होगी जो अप्रत्याशित परिस्थितियों के अनुकूल हो सकें, अपने लाभ के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकें और अभिनव समाधान निकाल सकें। आपको अपने संबंधित सशस्त्र बलों का दूत बनना चाहिए। परिवर्तन के दूत बनें और बड़े पैमाने पर समाज के बीच आदर्श रोल मॉडल बनें।”

हाल ही में म्यांमार और थाईलैंड में आए भीषण भूकंप और यहां भारत के समर्थन पर उन्होंने कहा, “भारत संकट के समय हमेशा सबसे पहले अपने मित्रों के साथ खड़ा रहा है। हम म्यांमार के लोगों को समय पर राहत पहुंचाने को अपना कर्तव्य समझते हैं।”

10 अप्रैल को वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेस स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी) के 80वें स्टाफ कोर्स का दीक्षांत समारोह था। 80वें स्टाफ कोर्स में 479 अधिकारी शामिल हैं, जिनमें 26 मित्र देशों के 38 अधिकारी भी सम्मिलित हैं। इस कोर्स में तीन महिला अधिकारी भी भाग ले रही हैं। राजनाथ सिंह ने समारोह से पहले, मद्रास रेजिमेंट युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की और वीरों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने देश के लिए उनके अमूल्य योगदान को स्वीकार करते हुए दिग्गजों से बातचीत भी की। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।

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