गीता भारतीय चिन्तन का अद्भुत ग्रंथ है। उसके श्लोकों के अध्ययन और विश्लेषक से मानव जीवन के अनेकानेक रहस्यों का उद्धाटन होता है। पढ़ने और समझने से एक विशेष आनंद की अनुभूति होती है। गीता का उपदेश तो आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपने कर्तव्य के प्रति सजग करने को दिया था किन्तु उसके श्लोक समय की इतनी लंबी अवधि बीत जाने के उपरांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, बल्कि यूं भी कह सकते हैं कि इतने लंबे अंतराल के बाद जब वर्तमान विश्व ने बेहद उन्नति कर प्रत्येक क्षेत्र में बहुत अधिक विकास कर लिया है, तब गीता के कथन की प्रासंगिकता और उज्ज्वलता और भी अधिक स्पष्ट समझ में आती है।
गीता कहती है- ज्ञान के समान इस संसार में और कुछ भी पवित्र नहीं है। आशय है कि ज्ञान की प्राप्ति से अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है और अज्ञान के कारण जो बात समझ में नहीं आती, वह साफ समझ में आने लगती है। हर कठिनाई का हल साफ दिखाई देने लगता है और व्यक्ति सहज ही सफलता पाने की दिशा में आगे बढ़ जाता है, इसलिए ज्ञान के समान इस संसार में और कुछ भी पवित्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान की पवित्रता सद्वृत्ति को जगाती है और जीवन को नयी दिशा दिखाती है। ज्ञान के बिना प्रगति असंभव है, इसलिए सही ज्ञान को प्राप्त करने का निरंतर प्रयास किया जाना चाहिये। गीता के काल में समाज के पास जो ज्ञान उपलब्ध था, आज उससे बहुत अधिक ज्ञान उपलब्ध है। उसी ज्ञान की प्राप्ति के परिणामस्वरूप आज मानव जीवन बहुत सरल और सुविधायुक्त हो गया है।
विगत दो शताब्दियों में विज्ञान की मदद से विश्व ने जो कुछ पा लिया है, वह ज्ञान की प्राप्ति के चमत्कार से संभव हुआ है। आज सूचना प्रौद्योगिकी से ही पल भर में दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली किसी भी घटना की न केवल सूचना मिल जाती है, वरन् उस घटना के चित्र भी हम घर बैठे टीवी के माध्यम से देख लेते हैं। संचार माध्यमों के विकास ने तथा गमनागमन की सुविधाओं ने मनुष्य के ज्ञान को बहुत समृध्द कर दिया है। विश्व एक गांव की भांति सिमटकर अत्यंत छोटा हो गया है। इस भू-भाग पर ही नहीं, जल, थल और आकाश मार्ग भी आवागमन के लिये सुलभ हो गये हैं और इतना ही क्यों? अंतरिक्ष की यात्राएं कर व्यक्ति अन्य ग्रहों और उपग्रहों तक पहुंचकर वहां की सब जानकारियां प्राप्त कर रहा है। वहां के चित्र भी वह घर बैठे अपने टीवी सेट पर देख सकता है।
ज्ञान के विस्तार ने सुख-सुविधाएं न केवल बढ़ाई हैं, बल्कि उनकी प्राप्ति के तरीकों की नयी-नयी तकनीक उपलब्ध करा दी हैं, जिससे जीवन सरल और सुखद हो गया है। सूचना प्रौद्योगिकी ने विश्व के दूरस्थ विश्वविद्यालयों को जोड़ दिया है। एक विश्वविद्यालय में एक विद्वान द्वारा दिये जा रहे व्याख्यान को सभी विश्वविद्यालयों तथा अन्य संस्थानों में उसी समय सुना व समझा जा सकता है और प्रश्नोत्तर द्वारा कठिनाइयां दूर की जा सकती हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में रोग के निदान तथा सर्जरी तक की जा सकती है। प्रशासन के क्षेत्र में जो सूचनाएं महीनों में पहुंच पाती थीं, वे तुरंत इन्टरनेट द्वारा या मोबाइल फोन द्वारा क्षण भर में कभी भी किसी भी जगह पहुंचाई जा सकती हैं तथा प्रशासनिक आदेश तुरंग भेजकर समस्याओं का निरीक्षण अविलंब किया जा सकता है। यह सब ज्ञान के प्रसार की सुविधा से हुआ है।
ज्ञान की पवित्रता और महत्ता का इससे बड़ा प्रमाण और क्यो हो सकता है? समाज को जो सुविधा उपलब्ध हो जाती है, उसका महत्व कम समझा जाने लगता है पर गीता के शब्दों की सत्यता को अनुभव से समझा जा सकता है। समय ने जो ज्ञान का उपहार देकर मानव जीवन को आसान बना दिया है, वह आने वाले समय में और भी नये अवदान देने के लिये ज्ञान की उपासना में रत है। कल और भी नये रहस्यों का उद्धाटन होना बहुत संभव है। इस प्रकार ज्ञान प्रत्यक्ष देवता है। ज्ञान से पावन कुछ नहीं है।


































































































